तुम्हें याद है ना ?

Source - Daily Mail
       
                   उस दिन मैं अपने घर वापस आया था कुछ दिन की छुट्टियाँ लेकर , सबसे मिलना जुलना हो चूकने के बाद जब खाना खाने बैठा तब तुम्हारा फोन आया । तुम बहुत नाराज थी क्योंकि मैं इस बार भी तुमसे मिलने नही आ पाया था तुम्हें बहुत देर समझाने के बाद कहीं जाकर तुम सामान्य हुए वह भी इस वादे के साथ कि वापसी के वक्त तुमसे मिलकर जाऊं । उस बातचीत के बाद मेरे दिन तुम्हारे साथ मुलाकात के सपने देखते हुए कब गुजर गए पता ही नहीं चला ।
            
               उस रोज शनिवार था मैंने उठकर सबसे पहले तुम्हे फोन किया था ताकि तुमको बता सकूँ के मैं आ रहा हूँ ,तुम कह रही थी के दोपहर तक आ जाना मैं इंतजार करूँगी । मैं उस फोन के बाद काम में इतना उलझ गया था कि तुम्हारे पास आते आते बहुत लेट हो गया था,फिर बस से उतरकर पागलों की तरह भागते हुए तुम तक पहुँचा तो बस स्टॉप की उस बेतरतीब भीड़ में तुम्हें व्यवस्थित और खामोश पाया । तुम्हारी झलक पाते ही जैसे मेरी सारी थकान और उलझनें दूर  हो गई थी , लेकिन तुम शायद थोड़ा नाराज थी और हाँ जायज़ थी तुम्हारी नाराज़गी के तुम्हे दोपहर तक आने की बात कहने के बाद मैं शाम को तुम्हारे पास पहुंचा । याद है जब तुमने मुझसे सवाल करने शुरू किए तब मैं इक बूत की तरह तुम्हारी सूरत को निहार रहा था और फिर तुमने मेरा हाथ थामकर मुझे फिर से वक्त में खींच लिया था क्योंकि मैंने तुम्हारे किसी भी सवाल का जवाब नहीं दिया था ।
                        समझ नहीं पा रहा था कि जिससे इन गुजरे दो साल से सिर्फ फोन पर बातचीत की थी उससे मिलकर क्या बात करूंगा, मेरी नज़र तुमसे हट नहीं रही थी और तुम ताने मार रही थी कि फोन पर तो बहुत बाते करते हो अब क्या जुबान नहीं है । लेकिन  जब तुम्हारे ताने सुनते हुए तुम्हारी आवाज मे थोड़ी नमी महसूस हुई तो मेरा ध्यान टूटा । याद है वो पल जब पहली बार मैंने तुमको छुआ था वो भी आँख पोछने के बहाने और उस पल के बाद हम दोनों कुछ देर के लिए वक्त की बहारो में लिपटकर इक दूजे को थामे हुए थे । मुझे आज भी स्मरण है वो खुबसूरत लम्हा जब तुमने पहली दफा मुझे अपनी बाँहो मे भरकर इस जहान् से दूर कर दिया था, तुम्हे भी याद है, है ना
             उस रोज हम लफ्ज के सहारे बात ही नहीं कर पाए थे और तुमने चिढ़ाया था कि अगली बार खामोश रहे तो मिलने नहीं आओगी, उस कटाक्ष मे छुपा वो तुम्हारा निष्कपट प्रेम मैं समझ गया था । क्या तुमको भी हुआ था मेरे प्यार का एहसास ?  मैं भी ना बहुत ही उल्टे सवाल करने लगा हूँ, भूल जाता हूँ कि मुझे अपने गले लगाकर इस बात का जवाब तुमने  बहुत पहले ही दे दिया था ।
                     दो घंटे की उस छोटी लेकिन सबसे हसीन मुलाकात के बाद जब तुमसे विदा लेने का वक्त आया तो बहुत बुरा लग रहा था मुझे और तुम्हारी नासाज़ सूरत भी इसी बात का सबूत थी । हम फिर भी खुश थे कि दो सालों का इंतजार खत्म हो गया था लेकिन अब इस मुलाकात की यादें और ज्यादा सीतम ढाने वाली थी जिनके सहारे जीते हुए हमें अगली मुलाकात का इंतजार करना था।
               शाम के साढ़े सात बजे थे, उस चौराहे पर अधिकांश लोग अपने घर की ओर लौट रहे थे और हमें भी लौटना था, आज से पहले वाली जिंदगी में दिल के करीब होकर भी दुर । जाते वक्त जब तुमने मुड़कर देखा तो ख्याल आया था कि तुम्हारे पहलु में मैं भी हमेशा तुम्हारे हाथ को थामे चलता रहूँ लेकिन यह मुमकिन न था, खैर सारी मजबूरियों को परे रख मैंने  एक बार फिर उसी प्रेम से तुम्हें बाँहो में भरकर और तुम्हारे माथे को चूमकर उस पहली मुलाकात का अविस्मरणीय अंत लिख दिया था, तुम्हे याद है ना ?
    
                                       .....कमलेश.....
                  

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