होली का रंग

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लगता है मथुरा, काशी
सारे मेरे करीब आये है
दिलो की नफ़रते जलाकर
ये होली मनाने आए है
हो जाता है एक इस तरह
कश्मीर और कन्याकुमारी भी
तब सिमट जाता है फासला
गुजरात और आसाम का
रंग जाता है हर कोई
रंगो की गहरी चादरों में
भुलाकर हर शिकवा गिला
रंगो में रंग जाता है ।
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खेलता हूँ फिर मैं भी
इन सारे रंगो के साथ
थमते है क्यूँ हाथ मेरे
सोचकर के इक बात
वो कैसे होली खेलेंगे
कुरबान हुए जो वतन पे
के क्या वो होली खेलेंगे
बदले जो परिवर्तन से
सुनाता है कोई ये खबर
के देश में खुशी छाई है
अरसो बाद किसी छवि ने
भारत की छवि बनाई है ।
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उठता है सैलाब फिर
दिल में उम्मीदों का
के बदलने वाला है वक्त
हमारे प्यारे वतन का
चढ़ा है गुलाल सत्ता का
ना चढ़ जाए इस कुर्सी का
कुबूल करे वो जनसेवक
आदेश देश की जनता का
छाती है मुस्कान फिर से
मेरे सुखे अधरों पर
उठा लेता हूँ थाल वो
रंगो में रंग जाता हूँ ।
                     .....कमलेश.....



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