तेरा मेरा रिश्ता




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जब भी उठती है मेरी कलम
तेरे ही अफ़साने लिखा करती है
राहें ये मेरी अक्सर मुझे
तेरी ही गलियों में लाया करती है
अजीब सा एहसास है क्यूँ
तेरे और मेरे रिश्ते में ।



अक्सर कभी गपशप में अपनी
उठ जाता है ये सवाल भी
के क्या नाम है इस रिश्ते का ?
मुस्काते हुए तब तू कहती है
कुछ ख़ास ना समझो इसे
रास्ता है ये एक दोस्ती का,
सुनकर जवाब को तेरे
सो जाते हैं अरमान मेरे
जो तुझे देख जाग उठे थे ।
अचानक निडर होकर तुम
जब छेड़ देती हो मुझे
घोलकर अपनी साँसों में,
करती हो प्यार फिर मुझे
लगता है इससे हसीन नहीं
ज़िन्दगी का कोई और लम्हा,
मोहब्बत को तेरी पाकर
करता हूँ खुद से सवाल
अजीब सा एहसास है क्यूँ
तेरे और मेरे रिश्ते में ।



तेरी कही हुई वो बाते
आज भी याद है मुझे
के मुझसा नहीं कोई तेरा,
और साथ चलेगी तू मेरे
थामकर मेरे हाथ को
ज़िन्दगी की इस डगर में:
दिए थे जो तोहफे तूने
अज़ीज़ है मेरे आज भी
जैसे हो मेरी जान इनमें।
खिलखिलाकर हंसती जब तू
सारी खलिश मिट जाती है
करी है जब शरारत कोई
मेरे सोये ख़्वाब जगा जाती है
भर कर बाँहों में तुझे जब
दूर हो जाता हूँ जहान् से
कतरा कतरा इस कायनात का
करता है मुझसे ये सवाल
अजीब सा एहसास है क्यूँ
तेरे और मेरे रिश्ते में ।

                           .....कमलेश.....

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